Monday, November 25, 2024
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घूमता हुआ आईना Ghumta Hua Aaina | Kashmir News | Rajeev Ranjan Srivastava | Shesh Narain Singh

धरती पर जन्नत यानी कश्मीर, जो कभी हसीन वादियों के लिए चर्चित रहती थी, अब हिंसा, आतंकवाद और अशांति के कारण सुर्खियों में रहती है। आए दिन जम्मू-कश्मीर से आतंकी घटनाओं, घुसपैठ, जवानों पर हमले, स्थानीय नागरिकों, खासकर युवाओं और सैन्यबलों के बीच झड़पों की खबरें आती ही रहती हैं। कहने को जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक सरकार है, लेकिन जो हकीकत है, उससे मुंह कैसे चुराया जा सकता है। अभी जो श्रीनगर में उपचुनाव हुए, उसमें मतदान प्रतिशत और हिंसा की घटनाओं से दीवार पर लिखी इस इबारत को आसानी से पढ़ा जा सकता है कि जम्मू-कश्मीर में सब कुछ ठीक नहीं है, बल्कि स्थिति बहुत ज्यादा बिगड़ी हुई है। कुछ दिनों पहले एक वीडियो काफी वायरल हुआ है, जिसमें सेना के जवानों पर कुछ कश्मीरी युवक अपनी नाराजगी निकाल रहे हैं, उनके हेलमेट गिरा रहे हैं, धक्का दे रहे हैं, वापस जाओ के नारे लगा रहे हैं। इस वीडियो में कुछ लोग नाराज युवकों को ऐसा करने से रोक रहे हैं, यह भी दिखाया गया है। कश्मीरी युवकों के इस वीडियो से देश में काफी नाराजगी देखी जा रही है और जवानों के साथ ऐसे व्यवहार पर काफी रोष भी है। आखिर क्यों कश्मीर लगातार सुलग रहा है? युवा नाराज क्यों हैं? लोकतंत्र हारता हुआ क्यों दिख रहा है? वैसे गृहमंत्रालय की मानें तो इसके पीछे उसने पाकिस्तान को जिम्मेदार ठहराया है.. क्या सचमुच इसके लिए केवल पकिस्तान ज़िम्मेदार है? ऐसे कई सवालों पर चर्चा के लिए हमारे साथ मौजूद हैं देशबन्धु के राजनीतिक सम्पादक शेष नारायण सिंह..आपका स्वागत है। हम चर्चा को आगे बढ़ाएं लेकिन उससे पहले देखते हैं ये रिपोर्ट-
केंद्रीय गृह मंत्रालय की 2016-17 की वार्षिक रिपोर्ट में बताया गया है, कि पाकिस्तान स्थानीय कश्मीरी नागरिकों को, भारत के खिलाफ भड़का रहा है। रिपोर्ट में, कश्मीर की अशांति के पीछे सीधे-सीधे पाकिस्तान के होने की बात सामने आई है। पाकिस्तान की ओर से घुसपैठ की बात भी रिपोर्ट में है। रिपोर्ट में सबसे खास बात ये बताई गई है, कि पाक अपनी रणनीति को बदलते हुए, इस बार आम नागिरकों को बहकाकर कश्मीर को अस्थिर कर रहा है। रिपोर्ट के मुताबिक, 2015 के मुकाबले 2016 में आतंकी वारदातें 54 फीसदी बढ़ीं हैं, वहीं सुरक्षाबलों के जवानों की मौतें 110 फीसदी ज्यादा हुई हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में कश्मीर में, हिंसा के 322 मामलों में 82 जवानों और 15 नागरिकों की जान गई, जबकि 150 आंतकियों को सुरक्षाबलों ने मार गिराया। इसके मुकाबले 2015 में, 208 हिंसा की घटनाओं में 39 जवानों और 17 नागरिकों की जान गई थी, जबकि 108 आतंकियों की मौत हुई थी। घुसपैठ की बात की जाए, तो रिपोर्ट के मुताबिक, 2016 में घुसपैठ के 364 मामले सामने आए और 112 आतंकियों ने घुसपैठ की। वहीं 2015 में घुसपैठ के 121 मामलों में 33 आतंकियों ने घुसपैठ की थी।
इस रिपोर्ट के बाद कम से कम केंद्र सरकार यह नहीं कह सकती कि किसी राजनीति के तहत उस पर कश्मीर समस्या का ठीकरा फोड़ा जा रहा है, क्योंकि जो आंकड़े हैं वे उसके ही गृह मंत्रालय के हैं। सरकार भले इसके लिए पाकिस्तान को जिम्मेदार माने लेकिन जम्मू-कश्मीर के लोगों को लगता है कि भारत सरकार कश्मीर के मुद्दे को नजऱअंदाज़ कर रही है और कश्मीरियों की आकांक्षाओं और राजनीतिक मांगों को लेकर वो गंभीर नहीं है। इसे लेकर कश्मीर के नौजवानों में बहुत गुस्सा है। कश्मीरी युवकों का ये गुस्सा हमने 2016 के प्रदर्शनों में भी देखा था, जो काफी लंबा चला, लेकिन बाद में लगा कि ये अब ठंडा पड़ चुका है पर ऐसा हुआ नहीं है। ऐसा लगता है कि इस नाराजगी में फिर से उबाल आ रहा है। सड़कों पर जो लोग प्रदर्शन कर रहे हैं और मर रहे हैं वो नौजवान हैं, 17-18 साल के, आखिर उनमें गुस्सा क्यों है?
-उपचुनाव में जो हिंसा हुई उसने 90 के दशक में जबसे चरमपंथ की शुरुआत हुई थी, उसकी याद दिला दी। 1996 का चुनाव सबसे मुश्किल चुनावों में से एक था। उस वक़त भी हिंसा हुई थी. हथियारों के साथ, लेकिन इस बार की हिंसा उससे अलग थी। आम लोग अपने घरों से बाहर निकल रहे थे, उनके पास कोई हथियार नहीं था। फिर भी वे चुनावों का विरोध कर रहे थे। क्या यह लोकतंत्र की हार है?
– कश्मीर के विशेषज्ञों के मुताबिक आशंकाओं की सबसे बड़ी वजह ये है कि किसी भी मुद्दे को लेकर कोई पहल नहीं की जा रही है। इसके पहले जो भी सरकारें रहीं, चाहें अटल बिहारी बाजपेयी की या मनमोहन सिंह की, उन्होंने आगे बढऩे वाले कुछ न कुछ क़दम ज़रूर उठाए हैं, चाहे नियंत्रण रेखा पर आवागमन खोलना हो, सीमापार व्यापार की इजाज़त देनी हो या पाकिस्तान से वार्ता की बात हो। लेकिन मोदी सरकार की ओर से कोई भी पहल नहीं की गई है, ऐसी भावना जम्मू-कश्मीर के लोगों में पनप रही है। आप इसे किस तरह देखते हैं?
– हाल ही में जम्मू-कश्मीर में चेनानी-नाशरी सुरंग का लोकार्पण प्रधानमंत्री ने किया और इस अवसर पर संबोधित करते हुए यह रहा कि युवाओं को तय करना है कि वे टूरिज्म चुनें या टेरेरिज्म। सुनने में बड़ी आसान लगने वाली यह बात दरअसल काफी पेचीदा है। क्या वाकई टूरिज्म और टेरेरिज्म के बीच चयन जैसी स्थितियां कश्मीर में हैं? युवा शौक से शिक्षा, रोजगार छोड़कर तो पत्थर या बंदूक हाथ में नहींले रहे होंगे?
-कश्मीर मसले पर संवाद के बजाय टकराव का दौर जारी है और उसमें कोई बदलाव नजर नहीं आता। आखिर हालात बेहतर करने का उपाय क्या है?
-अगर वाकई कश्मीर को बचाना है तो राज्य और केंद्र की सरकार को कश्मीर के युवाओं को राजनीतिक बातचीत में शामिल करने पर गंभीरता से सोचना होगा। फिलहाल जो उपाय किए जा रहे हैं, उस पर यही कहा जा सकता है कि-
मदारी मंच पर आकर नये करतब दिखाता है,
तमाशा देखता है मुल्क औ ताली बजाता है..
कभी मैं सोचता हूँ कि ये साजिश खत्म कब होगी,
कोई चीखता है न कोई हल्ला मचाता है

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